zindagi
जब उतरता है तेरी याद का लश्कर मुझ में
टूट जाता है मेरे सब्र का पैकर मुझ में
मैं तो बस आपकी शाख़ों पे खिली रहती हूँ
मेरी बाहों में सिमट जाओ बिखर कर मुझ में
मैं के वो झील हूँ जिसमें कोई...
टूट जाता है मेरे सब्र का पैकर मुझ में
मैं तो बस आपकी शाख़ों पे खिली रहती हूँ
मेरी बाहों में सिमट जाओ बिखर कर मुझ में
मैं के वो झील हूँ जिसमें कोई...