(नज़्म) "बे हिस हो जाना चाहता हूँ"
बे हिस हो जाना चाहता हूँ
बेज़ार अँधेरी रातों से
अब यार तिरे जज़्बातों से
नफ़रत और प्यार के चंगुल से
सब झूठ फरेबी बातों से
बे हिस हो जाना चाहता हूँ....
ये सन्नाटे तन्हा जंगल
और उड़ता हुआ तेरा आँचल
ये सर्द हवाएँ मौसम की
और तेरी आँखों का काजल
हर साज़िश और हुशियारी से
इस जाँ लेवा बीमारी से
बे हिस हो जाना चाहता हूँ.....
ये हिर्स ओ हवस...
बेज़ार अँधेरी रातों से
अब यार तिरे जज़्बातों से
नफ़रत और प्यार के चंगुल से
सब झूठ फरेबी बातों से
बे हिस हो जाना चाहता हूँ....
ये सन्नाटे तन्हा जंगल
और उड़ता हुआ तेरा आँचल
ये सर्द हवाएँ मौसम की
और तेरी आँखों का काजल
हर साज़िश और हुशियारी से
इस जाँ लेवा बीमारी से
बे हिस हो जाना चाहता हूँ.....
ये हिर्स ओ हवस...