...

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उम्मीदें तुम्हारी सजाने चला हूँ
तुमको तुम्हीं से चुराने चला हूँ।
उम्मीदें तुम्हारी सजाने चला हूँ।

कहीं टूट जाये ना साँसों की डोरी,
जीने की चाहत जगाने चला हूँ।

बावरा मन भटकता रहा उम्र भर
'दिया' ज्ञान का जलाने चला हूँ।

मुहब्बत की नदी जो सूखी हुई है, ...