...

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घटिया
तुम जैसे, झूठे, बेगैरतों से क्यों रखे यारी,
जैसे तुम हो घटिया वैसी सोच है तुम्हारी.

कभी तुम अपने गिरेबाँ में झांकते नहीं,
औरों पे इल्जाम लगाने की तुम्हे है बीमारी.

इसका कोई लेखा जोखा दर्ज नहीं कही,
तुमने कितनो के साथ अपनी रातें गुजारी.

बदचलन, झूठे, फरेबी, कमीनें, बेवफा,
तेरे जैसे लोगों के साथ तेरी बीती उम्र सारी.

बात निकली तो अब, दूर तलक जायेगी,
सबके सामने खोल देगे तेरी कारगुज़ारी.

© mansi_writer