तृष्णा (प्यास)
हर लम्हा जैसे भटक रही है....
रूह मेरी निःशब्द होकर खण्डरों में....
भटक सा गया है मन का चैन....
शब्द विहिन होकर इंतेजार की दल-दल में ..,,,
कलम की स्याही भी असमंजस में है अब,,..
शब्द कुछ मिल नहीं रहे है इसको..,,,
दूर-दूर तलक बस एक तृष्णा है फ़ैली,,
ख़ुद ही हिरण बन...