...

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चलन
बहुत चले अकेले हैं,
और कुछ दूर यूं ही चले...
कि आगे किसी भीड़ का एक हिस्सा बनें...
दिखावा ही चलन है तो,
हम भी कुछ दुनियां के मानिंद चले....
दिल खोल कर शिकायते करे,
कुछ औरों की भी मनमानियां सुने....
कुछ नकली ही सही,
होठों पर मुस्कुराहट सजाए,
कि भूल कर उदासियां अपनी,
खुश रहने का दिखावा करे....


© अपेक्षा