महारथी
प्रस्तावना
कहीं है मरू कोमल, कहीं कठोर है उसका तन मन,
कहीं बहता झरना निर्झर कोमल,कहीं काटे है
विशाल मेरु सघन।
कहीं डाल पर कोयल, कहीं डाल पर मैना
गाए अपने सुमधुर संगीत, बिना किसी से लेते सीख ।
कहीं रहते मदमस्त हाथी, धरा को डोलाए
कहीं रहता शेर कानन में, डराए सबको अपने दहाड़ से ।
प्रकृति ना जाने गोत्र, जाती किसिकी
मगर पाले है सबको, बड़े प्यार से ।
सब को समान सा मानती है प्रकृति
देती है सबको समान अधिकार,
जो,जो चाहे वो करे,
ना पूछे क्या है तुझे अधिकार ।
यदि हाथी में हो...
कहीं है मरू कोमल, कहीं कठोर है उसका तन मन,
कहीं बहता झरना निर्झर कोमल,कहीं काटे है
विशाल मेरु सघन।
कहीं डाल पर कोयल, कहीं डाल पर मैना
गाए अपने सुमधुर संगीत, बिना किसी से लेते सीख ।
कहीं रहते मदमस्त हाथी, धरा को डोलाए
कहीं रहता शेर कानन में, डराए सबको अपने दहाड़ से ।
प्रकृति ना जाने गोत्र, जाती किसिकी
मगर पाले है सबको, बड़े प्यार से ।
सब को समान सा मानती है प्रकृति
देती है सबको समान अधिकार,
जो,जो चाहे वो करे,
ना पूछे क्या है तुझे अधिकार ।
यदि हाथी में हो...