...

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इक मुसाफिर हूँ मैं
अनजान रास्तों पर,
छाव की तलाश करती,
इक मुसाफिर हूँ मैं ।

अपने सपनों को हासिल करने का जज्बा लेकर
चलती जा रही हूँ मैं ,

कभी छाँव कभी धूप से गुजर कर ,
कांटो को फूल बना रही हूँ मैं,

हर गम हर मुश्किल को गले से लगा के भी मुस्कुरा रही हूँ मैं,

लफ्जों और सरगम के बिना ही,
गीत नया कोई गा रही हूँ मैं,

नन्हीं सी कलम से,
कहानी खुद की लिखती जा रही हूँ मैं,

अनकही, अनसुनी दास्ताँ सुनाती,
इस अनजान रास्ते पर भी
खुद की साथी हूँ मैं,
इक मुसाफिर हूँ मैं ,
इक मुसाफिर हूँ मैं ।।





© anu