...

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पेशानी
यह दरिया देखों तो पानी पानी हैं,
आदत उसकी यह खानदानी हैं।

हर कोई हैरान है मेरे लहज़े से,
सब की यह एक ही परेशानी हैं।

तुम भी मेरे जैसे हो?तुम भी?
क्या तुम्हारी भी यहीं कहानी हैं?

बादल बरसाने लगा बिजलियां,
उसकी तो अलग मनमानी हैं।

कश्ती जब भी गई डूब गईं,
वह तो समंदर की दीवानी हैं।

अपने पराए करने लगे जानवर,
यह फितरत तो इंसानी है!

जवानों करों कुछ भी ध्यान से,
तुम पर नेताओं की निगरानी हैं।

इस मिट्टी को लगा लो पेशानी पे,
यह मिट्टी पाक-ए–हिंदुस्तानी हैं।
© वि.र.तारकर.