दोहा - ०१ ( प्रेम )
दोहा - ०१ ( प्रेम )
आठ पहर चौंसठ घड़ी
ना दिन मिले ना राती
हे प्रीतम तुमसे मिलन को
मैं तरसूं जस पाती
वृक्ष आलिंगनबद्ध करे
निकट रखे वह पाती
ज्यों -ज्यों बिरह आगमन करे
त्यों - त्यों छुटे पाती
तुझ बिन निर्मोही संसार मेरो...
आठ पहर चौंसठ घड़ी
ना दिन मिले ना राती
हे प्रीतम तुमसे मिलन को
मैं तरसूं जस पाती
वृक्ष आलिंगनबद्ध करे
निकट रखे वह पाती
ज्यों -ज्यों बिरह आगमन करे
त्यों - त्यों छुटे पाती
तुझ बिन निर्मोही संसार मेरो...