बेड़ियां....!
क्यों मुझे अपनी सोच की बेड़ियों से बाँधते
हो तुम?
क्यों मेरी सीमायें हर पल निर्धारित करते
हो तुम?
क्यों लिंग के आधार पर हमारी योग्यता जाँचते
हो तुम?
क्यों मेरे पंखों को कमज़ोर आँकते
हो तुम?
जब झुकी आँखे बन सकती हैं पर्दा,
तो क्यों लम्बा घूंघट लेने की सीख देते
हो तुम?
जब मैं सबके बीच रह अपनी मर्यादा का...
हो तुम?
क्यों मेरी सीमायें हर पल निर्धारित करते
हो तुम?
क्यों लिंग के आधार पर हमारी योग्यता जाँचते
हो तुम?
क्यों मेरे पंखों को कमज़ोर आँकते
हो तुम?
जब झुकी आँखे बन सकती हैं पर्दा,
तो क्यों लम्बा घूंघट लेने की सीख देते
हो तुम?
जब मैं सबके बीच रह अपनी मर्यादा का...