आशियाना
वो कहते हैं, जो पंछी अपना घर भूल जाते हैं,
वो एक वक्त बाद अपने घोंसले में वापस आ जाते हैं।
पर उनका क्या, जो खुद ही अपना आशियाना छोड़ जाते हैं?
जिनके दिलों में घर होते हुए भी, वो दूरियाँ बढ़ा लेते हैं।
घर की दीवारें इंतज़ार करती हैं उनके लौटने का,
हर कोना पुकारता है उन्हें अपनाने का।
मगर वो जो खुद अपने रिश्तों की जड़ें काट देते हैं,
क्या उनकी राह कभी वक़्त या हालात मोड़ सकते हैं?
कभी दिल की आवाज़ सुनकर लौट आओ,
क्योंकि दूर रहकर भी, कुछ बंधन कभी टूटते नहीं,
और वो घोंसला आज भी तुम्हारा ही इंतज़ार करता है,
जिसे तुमने कभी अपने हाथों से बसाया था।
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वो एक वक्त बाद अपने घोंसले में वापस आ जाते हैं।
पर उनका क्या, जो खुद ही अपना आशियाना छोड़ जाते हैं?
जिनके दिलों में घर होते हुए भी, वो दूरियाँ बढ़ा लेते हैं।
घर की दीवारें इंतज़ार करती हैं उनके लौटने का,
हर कोना पुकारता है उन्हें अपनाने का।
मगर वो जो खुद अपने रिश्तों की जड़ें काट देते हैं,
क्या उनकी राह कभी वक़्त या हालात मोड़ सकते हैं?
कभी दिल की आवाज़ सुनकर लौट आओ,
क्योंकि दूर रहकर भी, कुछ बंधन कभी टूटते नहीं,
और वो घोंसला आज भी तुम्हारा ही इंतज़ार करता है,
जिसे तुमने कभी अपने हाथों से बसाया था।
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