...

10 views

मै किसी की हो नहीं सकती
ज़ात एक मजहब एक, फिर भी क्यों नहीं मिलते तुम।
हर रोज़ वही रात वही सवेरा,ख़्वाबों में क्यों नहीं ढलते तुम।
जो उजाड़ी है फसलें तुमने मेरे सपनो की, मै वो फिर से बो नहीं सकती।
और तुम कहते हो मैं किसी की हो नहीं सकती।☹️

जब लड़ते हो तुम मुझसे पागलों की तरह,
तहज़ीब भूल जाते हो जाहिलों की तरह,
तब लहरे मुझमें भी उठती है साहिलों की तरह।
पर मै मौन हो जाती हूँ क्यूँकि तुम्हें खो नहीं सकती।
ओर तुम कहते...