गंदी चिड़िया
दोस्तो आजकल जमाना बदल गया है, लोग लड़की पैदा होने पर खुशी मनाते हैं। खास कर सालों के इंतज़ार के बाद कोई औलाद पैदा हुई हो। लेकिन फिर क्यों वो आंगन की छोटी सी चिड़िया बन गई गंदी चिड़िया....?
लड़कियां घर के काम जिन्हें सिखाए गए...
छोटी सी बच्ची से कपड़े , बर्तन धुलवाए गए...
बताया गया बचपन से की ससुराल जाके रहना होगा...
तुम्हे सारे काम आने चाहिए, खरा खोता भी सहना होगा।
पढ़ाई भी बच्ची खूब करती थी...
कुछ बड़ा बनने के सपने आंखो में भरती थी...
एक दो रुपए मां उसको चुपके से दिया करती थी...
उसमे टॉफी चार लिया करती थी...
तीन तो खुद खाती..
एक मां के लिए जरूर बचाती।
स्कूल में गुमसुम सी रहती...
पूरे दिन के किस्से मां से कहती...
बेटी बड़ी होने लगी...
बेटी सबसे बड़ी थी...
रिश्तेदार कहते घर में तीन लड़कियां...
भाई नहीं है क्या..
दुभिदा आई खड़ी थी...
छोटी सी मगर बड़ी बच्ची...
हर दिन भाई के लिए मांगती दुआ...
बहुत साल हो गए फिर भी कुछ कबूल ना हुआ...
बच्ची और बड़ी हुई...
बाहरवी में थी...
तो सवाल करती...
मां हमारा घर कब बनेगा..
भविष्य खराब दिखता है अपना...
घर जल्दी बन जाए बस यही है सपना...
मां कहती बनाएंगे घर...
हम वक़्त आने पर...
करेंगे सब।
बच्ची पढ़ लिख कर बड़ी हुई...
मां बोली लड़का देख लेना...
नोकरी और अच्छी सूरत और जात देख लेना...
लड़की बात से सहमत हुई...
प्यार में आने की हिम्मत हुई...
एक लड़के को दिल दे बैठी...
लड़की तबसे कुपुत्री हुई...
जात धर्म भी लड़के का अलग था...
लड़की दुनिया से अनजान...
रोज रोज ताने सुनती..
रोज सुनती अपना अपमान...
लड़का उसकी पसंद था...
पर दिल का अच्छा, काम से चिकित्सक था...
लेकिन लड़की की जिंदगी पर ना उसका हक था...
कभी जबरदस्ती के रिश्ते उसके करवाते...
बदमाग लडको से मिलवाते...
लड़की की ज़िन्दगी अब उलझन बनी...
कसूर क्या था उसका ये सवाल उठता...
सीने में एक दर्द उठता...
प्यार मां का सुनाया मैने...
मगर बचपन के अत्याचार छुपाए....
जिनसे टूट चुकी थी नौजवान ...
वो किस्से कहानी से हटाए...
लड़की के चरित्र पर सवाल कई हजार आए...
इल्जाम भी अपनों ने हि खूब लगाए...
की लड़का नहीं है घर में डर नहीं है...
बाप से जुबान लड़ाती हो...
शर्म नहीं है...
उधर लड़की सब छोड़ ..
कैरियर बनाना चाहती थी...
नोकरी करना चाहती थी...
बाहर जाना चाहती थी...
मगर रोक टोक लगी...
घर में साडा पढ़ाई भी गई...
फिर आया दिन ऐसा...
लड़के ने भी साथ छोड़ा...
घर वालो के खिलाफ नहीं हो सकता...
कह कर रिश्ता तोड़ा...
साथ भी इसी ने दिया था क्या कहती...
चुपचाप हर सितम सहती...
मेरी मुसीबत में मेरे साथ रहा था...
मेरे घर वालो की गलियों को भी सहा था...
इसी ने था काबिल बनाया...
जीवन का सलीका समझाया...
इसकी वजह से ही पहली बार ...
अपनी काबिलियत से था पैसा कमाया...
अपने छोटे मोटे सोक पूरे किए...
इसने मेरी फीस तक के पैसे थे दिए...
मुझे हर हाल में संभाला था...
अब ये भी छोड़ के जाने वाला था...
क्या करता ये भी...
इसके भी परिवार खिलाफ था..
इसने भी तकलीफ सही हर बार...
बहुत खाई घर वालो की मार.
सगाई भी इसकी पक्की हो गई...
ये ज़िन्दगी की डोर थोड़ी कच्ची हो गई....
हर तरफ से बुरी ये बच्ची हो गई...
सही गलत और गलत सही में खो गई...
इस तरह बनी ये चिड़िया...
गंदी चिड़िया।
© jyoti
लड़कियां घर के काम जिन्हें सिखाए गए...
छोटी सी बच्ची से कपड़े , बर्तन धुलवाए गए...
बताया गया बचपन से की ससुराल जाके रहना होगा...
तुम्हे सारे काम आने चाहिए, खरा खोता भी सहना होगा।
पढ़ाई भी बच्ची खूब करती थी...
कुछ बड़ा बनने के सपने आंखो में भरती थी...
एक दो रुपए मां उसको चुपके से दिया करती थी...
उसमे टॉफी चार लिया करती थी...
तीन तो खुद खाती..
एक मां के लिए जरूर बचाती।
स्कूल में गुमसुम सी रहती...
पूरे दिन के किस्से मां से कहती...
बेटी बड़ी होने लगी...
बेटी सबसे बड़ी थी...
रिश्तेदार कहते घर में तीन लड़कियां...
भाई नहीं है क्या..
दुभिदा आई खड़ी थी...
छोटी सी मगर बड़ी बच्ची...
हर दिन भाई के लिए मांगती दुआ...
बहुत साल हो गए फिर भी कुछ कबूल ना हुआ...
बच्ची और बड़ी हुई...
बाहरवी में थी...
तो सवाल करती...
मां हमारा घर कब बनेगा..
भविष्य खराब दिखता है अपना...
घर जल्दी बन जाए बस यही है सपना...
मां कहती बनाएंगे घर...
हम वक़्त आने पर...
करेंगे सब।
बच्ची पढ़ लिख कर बड़ी हुई...
मां बोली लड़का देख लेना...
नोकरी और अच्छी सूरत और जात देख लेना...
लड़की बात से सहमत हुई...
प्यार में आने की हिम्मत हुई...
एक लड़के को दिल दे बैठी...
लड़की तबसे कुपुत्री हुई...
जात धर्म भी लड़के का अलग था...
लड़की दुनिया से अनजान...
रोज रोज ताने सुनती..
रोज सुनती अपना अपमान...
लड़का उसकी पसंद था...
पर दिल का अच्छा, काम से चिकित्सक था...
लेकिन लड़की की जिंदगी पर ना उसका हक था...
कभी जबरदस्ती के रिश्ते उसके करवाते...
बदमाग लडको से मिलवाते...
लड़की की ज़िन्दगी अब उलझन बनी...
कसूर क्या था उसका ये सवाल उठता...
सीने में एक दर्द उठता...
प्यार मां का सुनाया मैने...
मगर बचपन के अत्याचार छुपाए....
जिनसे टूट चुकी थी नौजवान ...
वो किस्से कहानी से हटाए...
लड़की के चरित्र पर सवाल कई हजार आए...
इल्जाम भी अपनों ने हि खूब लगाए...
की लड़का नहीं है घर में डर नहीं है...
बाप से जुबान लड़ाती हो...
शर्म नहीं है...
उधर लड़की सब छोड़ ..
कैरियर बनाना चाहती थी...
नोकरी करना चाहती थी...
बाहर जाना चाहती थी...
मगर रोक टोक लगी...
घर में साडा पढ़ाई भी गई...
फिर आया दिन ऐसा...
लड़के ने भी साथ छोड़ा...
घर वालो के खिलाफ नहीं हो सकता...
कह कर रिश्ता तोड़ा...
साथ भी इसी ने दिया था क्या कहती...
चुपचाप हर सितम सहती...
मेरी मुसीबत में मेरे साथ रहा था...
मेरे घर वालो की गलियों को भी सहा था...
इसी ने था काबिल बनाया...
जीवन का सलीका समझाया...
इसकी वजह से ही पहली बार ...
अपनी काबिलियत से था पैसा कमाया...
अपने छोटे मोटे सोक पूरे किए...
इसने मेरी फीस तक के पैसे थे दिए...
मुझे हर हाल में संभाला था...
अब ये भी छोड़ के जाने वाला था...
क्या करता ये भी...
इसके भी परिवार खिलाफ था..
इसने भी तकलीफ सही हर बार...
बहुत खाई घर वालो की मार.
सगाई भी इसकी पक्की हो गई...
ये ज़िन्दगी की डोर थोड़ी कच्ची हो गई....
हर तरफ से बुरी ये बच्ची हो गई...
सही गलत और गलत सही में खो गई...
इस तरह बनी ये चिड़िया...
गंदी चिड़िया।
© jyoti
Related Stories