स्वयं के भीतर के पुष्प को खिलने दे।
कहा गया है, कि पिंजरे लोहे के नहीं, बल्कि विचारों के बने होते हैं, आदमी जकड़ा हुआ है, फँसा हुआ है, अपने ही विचारों में, यहाँ तक कि कोई अच्छा काम करते समय भी उसको लोगो की सोच की फिक्र रहती है, आदमी खुद की कोई अवाज नहीं सुनता, उसकी खोपड़ी में दूसरे लोगो की...