...

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#यादें
#यादें
शाम होते ही उनकी यादों में डुब जाना है
किसी मरे हुए दरख़्त की तरह सूख जाना है।

रात भर आंखो में आशुओं को बसना है
सुबह होते ही फिर पूरे दिन झूठा हँसना है।

इस मन की पीड़ा को भी तो सबसे छीपाना है
यारों की महफ़िल में खुद को नीलाम बताना है।

एक रोज यादों के इस सिलसिले को खुद रुक जाना है
आखिर इक दिन देह से रूह को भी निकल जाना है।।


© Nitish Nagar