श्रृंगार:-एक प्रश्न हर बार
मन में आती एक बात हमेशा,क्यों नहीं कर सकती श्रृंगार स्त्री ख़ुद के लिए।
श्रृंगार पे तो है उसका एकाधिकार।
ख़ुद को अस्त-व्यस्त दिखाना कहां तक है सही?
किसी स्त्री के सजने संवरने पे क्यों हर बार सवाल कई।
जरूरी नहीं सज रही हो किसी के लिए।
ख़ुद की मुस्कान आईने में देख कर,संवरी हुए सूरत के साथ पा ले असीम ऊर्जा पूरे दिन के लिए,अपने आत्मविश्वास के लिए।
धोखा खाई,छोड़ी हुई...
श्रृंगार पे तो है उसका एकाधिकार।
ख़ुद को अस्त-व्यस्त दिखाना कहां तक है सही?
किसी स्त्री के सजने संवरने पे क्यों हर बार सवाल कई।
जरूरी नहीं सज रही हो किसी के लिए।
ख़ुद की मुस्कान आईने में देख कर,संवरी हुए सूरत के साथ पा ले असीम ऊर्जा पूरे दिन के लिए,अपने आत्मविश्वास के लिए।
धोखा खाई,छोड़ी हुई...