अमृता प्रीतम
बिन कहे
बिन सुने
बिना उम्मीद के
जो उम्र भर रहा
वो एहसास
कितना प्यारा था
चढ़ के कभी
न उतरा जो
वो रंग इश्क़ का
आह !
कितना गाढ़ा था।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद
© All Rights Reserved
बिन सुने
बिना उम्मीद के
जो उम्र भर रहा
वो एहसास
कितना प्यारा था
चढ़ के कभी
न उतरा जो
वो रंग इश्क़ का
आह !
कितना गाढ़ा था।
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