दो मौन किनारे साथ रहे, जैसे धरती आकाश रहे
दो मौन किनारे साथ रहे, जैसे धरती आकाश रहे
साथ ही हंसते, साथ ही रोते
हर वक्त सोचते, जैसे अब हम हैं मिलने वाले होते
बीच में कल-कल बहती नदिया, यूं ही बीत गई सदियां.
पानी का तेज बहाव, कम ,कभी ज्यादा होता
किनारों के मिल पाने का कभी ना वादा होता
बीच में नदियां करती शोर, उनकी एक सी शाम- एक सी भोर.
लहरें भी खूब मचलती, खूब उछलती ,खूब मचाती शोर
दो मौन किनारे साथ रहे, जैसे धरती...
साथ ही हंसते, साथ ही रोते
हर वक्त सोचते, जैसे अब हम हैं मिलने वाले होते
बीच में कल-कल बहती नदिया, यूं ही बीत गई सदियां.
पानी का तेज बहाव, कम ,कभी ज्यादा होता
किनारों के मिल पाने का कभी ना वादा होता
बीच में नदियां करती शोर, उनकी एक सी शाम- एक सी भोर.
लहरें भी खूब मचलती, खूब उछलती ,खूब मचाती शोर
दो मौन किनारे साथ रहे, जैसे धरती...