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झुका घमंडीयों का सर
शेगांव मे पटिलों का प्राचीन घरांना,जो था सम्पन्न भी।
संत सेवा फल उन्हें पाटिल की उपाधि का सम्मान मिला भी।
पंढरीनाथ के उपासक,गोमजी का आशीर्वाद भी।
महाद जी पाटिल के दो योग्य पुत्र कडता जी,कुकाजी थे भी।
कडता को छः पुत्र,कूका निसंतान पर भाग्यवान था भी।
कडता के निधन पश्यात पुत्रों का पितृतुल्य प्रेम किया भी।
पाटिल के घर समृद्धि और अष्टसिद्धि हासिल कर ली भी।
खंडू पाटिल ज्येष्ठ पुत्र सारे कार्य सम्हालने लगा भी।
गणपति,नारायण,मारुति,हरि,कृष्ण का साथ मिला भी।
धन और सत्ता का घमण्ड तो था सभी अखाड़े जाते थे भी।
हर झगड़ों और कलह में इनका संबंध होता था भी।
छोटे बड़ों का न करते मान,मन मे जो आये बोलते थे भी।
संत गजानन से कुचेष्टा करते,गण्या पागल कहते उन्हें भी।
हमसे मल्ल युद्ध करो,योगी हो तो शक्ति दिखाओ हमे भी।
संत मौन रहते उनके अहंकार का करते थे वर्तन भी।
भास्कर कहे अकोला चले महाराज क्यों सहे अपमान भी।
ये पाटिल है और सत्ता भी हासिल है इन्हें भी।
संत कहे धौर्य रखो ये सब मेरे भक्त है है इनपर संत कृपा भी।
उद्दण्डता सत्ता की है पहचान,उग्र स्वभाव है पहचान भी।
बाघ का उग्र स्वभाव है यही तो है उसका आभूषण भी।
नरम तलवार का क्या उपयोग, कभी उद्दण्डता जाएगी भी।
हरि ने महाराज का पकड़ हाथ कहा मल्लयुद्ध करो भी।
तुम्हे पराजित करूँगा तू बड़बोला जो गया है भी।
तेरी शक्ति की परख और सत्य असत्य का पता चलेगा भी।
उसकी इच्छा पूरी करने संत गजानन गए अखाड़े भी।
अखाड़े में बैठ कहा करो शक्ति प्रदर्शन मुझे अब उठाओ भी।
ताकत लगाई तिल भर न हिले,हरि पसीने से भर गया भी।
सोचा ये पतले है जरूर पर पर्वत की तरह अटल हैं भी।
उलाहना भी सह ली,है यह इनका बड़प्पन भी।
है यह दिव्य पुरुष,इनके चरणों मे सिर रखना योग्य है भी।
महाराज बोले मल्ल में पराजित करों या पुरस्कार दो भी।
पाटिल उपाधि छोड़ दो,यही मेरा होगा पुरस्कार भी।
अब हरि पाटिल ने छोड़ी उद्दण्डता और कुचेष्टा भी।
अन्य पटिलों ने कहा क्यों कर डरते,हम पाटिल कुमार है भी।
उनके चरणों मे शीश झुकाते,और भक्ति करते उनकी भी।
सभी गए मंदिर साथ ले गए गन्ने का भारा भी।
कहा अरे पागल गन्ना खाओगे क्या,मुँह से नही शरीर से भी।
पर प्रहार का एक चिन्ह न दिखे शरीर पर भी।
मान जाएंगे तुम्हे योगी,स्वीकारेंगे तुम्हारी सत्ता भी।
अनेकों प्रहार पड़ने पर शरीर मे न उभरा एक चिन्ह भी।
डर कर संत के चरण झुके,क्षमा मांगी भी।
पुष्टिकर पदार्थों से शक्ति मिलती है,पर योग से बलवान भी।
अपने हाथों से गन्ने का रस सबको उन्होंने पिलाया भी।
उन्हें वंदन घर जाकर ज्येष्ठ खंडू को सारी बातें बतायी भी।
गांव से साक्षात ईश्वर आये है,हमने इसे अनुभव किया है भी।
इसके पश्यात खंडू पाटिल प्रतिदिन दर्शन को जाने लगा भी।
पर वह खड़ी भाषा कहता,नम्रता न उसके वाणी में भी।
गजानन को गण्या कहता,तू कहकर संबोधित करता था भी।
गजानन कहते जहाँ अत्यंत प्रेम हो,वहाँ तुकोरी भाषा है भी।
तुकोरी भाषा में हीनता नही,प्रदर्शित करती अत्यंत प्रेम भी।
कुका जी कहे खंडू से,मांग ले एक नाती मेरे लिये भी।
खंडू ने कहा अरे गण्या मेरे कूका जी चाहते एक नाती भी।
संत बोले पुत्र की भीख मांगी है तो,नाम रखना भीखाजी भी।
सौ ब्राम्हणों को आम रसपान कराना भी।
गंगा बाई हुई गर्भवती,दिया पुत्र को जन्म भी।
मिठाई दी सब बच्चों को,आमरस पिलाया ब्राम्हणों को भी।
धूमधाम से किया नामकरण और नाम रखा भीकू भी।
संत गजानन कहते प्रेम प्रदर्शन जरूरत मधुर वाणी की भी।
जब लोभ न हो,जन कल्याण हो,इच्छा पूरी होती है भी।
जय हो श्री नरदेह नारायण गजानन महाराज की भी।
संजीव बल्लाल ११/३/२०२४© BALLAL S