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हाए ईश्क
हवा इश्क रुख बदलती मुझे देख कर
ये चांद ढक दिया जाता है अब्र में कहीं
मृगतृष्णा में खोया अभी भी मैं
परछाई में प्रतिबिंब खोजता अभी तक
तेरे सुकून की छाव खोजता अभी तक
तेरे नजरो में ढूंढू तुझे आज भी
जनता हूं किरदार तेरे हयात का बस मैं....
कटपुत्तली सा नाचता हाए तेरे इश्क में
© improvinglyincomplete
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