...

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....... आया हूँ!
खुद को दफन कर आया हूँ
कफन में संवकर आया हूँ!

ज़िन्दगी आयी थी हिसाब माँगने,
एक किस्सा आज भी पढ़कर आया हूँ!

बड़ी भीड़ लगी थी मेरे पीछे,
जैसे चार लोगों से झगड़कर आया हूँ!

आग से पहले ये उठता धुआँ कैसा..!
मतलब कुछ शख्स से जलकर आया हूँ!


लगे हैं हर कोई मुझे संभालने में,
पता नहीं कितना बिखर कर आया हूँ!

आज माँ डाँटती भी नहीं रही सोये में,
शायद! बहुत जगकर-थककर आया हूँ...!

© Sumi_