...

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तुम नारी हो …
तुम बसंत हो , तुम शीत हो ,
तुम ही जेठ की तपती धूप हो ।

तुम लक्ष्मी हो , तुम सरस्वती हो ,
तुम ही  महाकाली, दुर्गा सत्यचड़ी हो ।

तुम प्रेम हो , तुम माया हो ,
तुम ही स्नेह और मातृत्व की छाया हो ।

तुम प्रलय हो , तुम शांति हो ,
तुम ही पृथ्वी की सबसे बड़ी क्रांति हो ।

तुम प्रकृति हो , तुम निकार हो ,
तुम ही समाज की विडंबना का शिकार हो ।

तुम बेटी हो , तुम अर्धांगिनी हो ,
तुम ही प्रकृति की सृजन की जननी हो ।

तुम मान हो , तुम शान हो ,
तुम ही संसार का अभिमान हो ।

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© श्रेया