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गुमशुदा
गुमशुदा
ठिकाने की तलब क्या,
राह के नजारों की दीवानगी भी नहीं।
बस...! इस आश में चला, की खो जाऊं।
खो जाऊं..! शाकाब में कन्ही,
इस कदर की, मंजिल क्या,
में खुद..? खुदा को भी नज़र ना आऊं।
नज़र क्या,, में बशर भी कहां,
रब्त भी कहूं??, में ना - तवां कहीं
यूं एक क़दम भी चलूं तो, बिखर जाऊं।
बिखर जाऊं..! और सब हो बेअसर यहीं।
ज़दा खुद से ही में😌बस झौंका हवा का और..??
समेट कर वजूद अपना, कहीं खो जाऊं।
--- 🌻
© All Rights Reserved
ठिकाने की तलब क्या,
राह के नजारों की दीवानगी भी नहीं।
बस...! इस आश में चला, की खो जाऊं।
खो जाऊं..! शाकाब में कन्ही,
इस कदर की, मंजिल क्या,
में खुद..? खुदा को भी नज़र ना आऊं।
नज़र क्या,, में बशर भी कहां,
रब्त भी कहूं??, में ना - तवां कहीं
यूं एक क़दम भी चलूं तो, बिखर जाऊं।
बिखर जाऊं..! और सब हो बेअसर यहीं।
ज़दा खुद से ही में😌बस झौंका हवा का और..??
समेट कर वजूद अपना, कहीं खो जाऊं।
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