इंसान
#WritcoPoemChallenge
सड़क इंसान, शहर वीरान,
पशु-पक्षी स्वतंत्र, पिंजड़ो में बंद पड़ा इंसान।
इंसान जुबान बंद, जिस्म भयभीत,
पशु पक्षी चहचाहते, खुशी के गीत गाते,
शायद इंसानों को उसके कर्मों की याद दिलाते।
एक वक्त था, इंसानों ने जानवरों पर खूब दिखाई दरिंदगी,
आज खुद की खतरे में पड़ी है जिंदगी।
इंसानों का शोरगुल, शहरो का भाग दौड़,
बंद हो चुका है सब कुछ, आया नया मोड़।
आसमान की सैर क्या, जमीन पर भी पैर बंधे हैं,
जीवन जीने के लिए, बंद पड़े सारे धंधे हैं।
धूमिल हो रही है शहरों का चकाचौंध,
विकास की घंटी भी है मौन।
कोरोना का खतरा मानवजनित है या प्रकृति का,
परिणाम है इंसान के बुरे कर्मों का या उसके कृति का।
विकास की रफ्तार में इंसान घमंडी हो गए,
आज पाबंदी में बंधकर, वे खुद बंदी हो गए।
सड़क इंसान, शहर वीरान,
पशु-पक्षी स्वतंत्र, पिंजड़ो में बंद पड़ा इंसान।
इंसान जुबान बंद, जिस्म भयभीत,
पशु पक्षी चहचाहते, खुशी के गीत गाते,
शायद इंसानों को उसके कर्मों की याद दिलाते।
एक वक्त था, इंसानों ने जानवरों पर खूब दिखाई दरिंदगी,
आज खुद की खतरे में पड़ी है जिंदगी।
इंसानों का शोरगुल, शहरो का भाग दौड़,
बंद हो चुका है सब कुछ, आया नया मोड़।
आसमान की सैर क्या, जमीन पर भी पैर बंधे हैं,
जीवन जीने के लिए, बंद पड़े सारे धंधे हैं।
धूमिल हो रही है शहरों का चकाचौंध,
विकास की घंटी भी है मौन।
कोरोना का खतरा मानवजनित है या प्रकृति का,
परिणाम है इंसान के बुरे कर्मों का या उसके कृति का।
विकास की रफ्तार में इंसान घमंडी हो गए,
आज पाबंदी में बंधकर, वे खुद बंदी हो गए।