...

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मुझ को चाहता है
वो पगलू, बुद्धू सा मेरा मुझ को बेपनाह चाहता है।
मेरी एक मुस्कान के लिए क्या क्या नहीं करता है।

किसी ने भी, किसी से की ना होगी ऐसी मोहब्बत,
प्यार को रब मानकर, वो सजदे में सर झुकाता है ।

कितना भी गुस्सा हो रूठकर भी दूर कहा रह पाता,
मेरी हर भूल को फूल समझकर नखरे उठाता है।

जैसे नामंजूर है उसे मेरे माथे पर कोई भी शिकन हो,
मुझे ना दर्द हो इसलिए अपने सारे गम छुपाता है ।

हजारों लाखों करोड़ों में मेरी नज़रे उसे ही तलाशती,
फकत सुरत से ही नहीं सीरत से मेरा मन लुभाता है।

कभी ना किए उसने कोई झूठे, कसमें वादे मुझसे,
हर रस्म रिवाजों से बढ़कर वो मेरा साथ निभाता है ।

क्यों न लुटाए रश्मि उस पर अपनी दिल-ओ-जान,
जो अपनी जान से बढ़कर तो मेरी परवाह करता है ।

© Rashmi Kaulwar