...

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मैं चाहता हूँ
सोचता हूँ–
मासूमियत कैसी दिखती होगी !
मुझे लगता है–
बिल्कुल तुम्हारे जैसी।

सोचता हूँ–
अगर अच्छाई का चेहरा होगा कहीं,
तो
बिल्कुल तुम्हारे जैसा होगा।

पता है!
बहुत पहले–
मैंने मुस्कुराता हुआ आसमान देखा था,
फिर तुम मिलीं
हू-ब-हू !!!

मुझे लगता है–
कहीं न कहीं
धरती का भी चेहरा होगा,
और
तुम्हारे जैसा ही होगा।

देखो !!
एक और चेहरा बन गया
बिल्कुल तुम्हारे जैसा–
मेरी ये कविता भी
अब
तुम्हारे जैसी दिख रही है !

कमाल है न !!!
बस
इसीलिए–

मैं चाहता हूँ–
तुम सदैव मुस्कुराती रहो,
ताकि–
मुस्कुराती रहे अच्छाई,
मुस्कुराती रहे
मेरी कविता..

मुस्कुराती रहे धरती,
मुस्कुराता रहे आसमां।

मैं चाहता हूँ–
तुम खिली रहो हमेशा,
ताकि–
खिली रहे प्रकृति,
और
मुस्कुराती रहे नियति।
© Lekhak Suyash

#lekhaksuyash