...

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~ सफ़र-ए-ज़िन्दगी ~
ये सफ़र-ए-ज़िन्दगी में
ऐसा गम का तराना होगा
अब मुझे चोट खाकर भी
यहाँ हर पल मुस्कुराना होगा,

हाँ! माना मैं आज तन्हा
और अकेले चल रही हूं
कभी एक दिन मेरे पीछे भी
ये पूरा जमाना होगा,

ना किसी की चाहत है
और ना किसी के जाने का गम
अब कुछ पाने के खातिर
अपने दर्द को ही सहलाना होगा,

मैं अपनों के दिल-ए-महफ़िल से
ठुकराई गई हूं
अब बंजारों की तरह
मेरा न कोई ठिकाना होगा,

जब पीछे मुड़कर देखा
तो कोई ना मिला रोने वाला
अब जिंदा रहकर ही
मुझे अपने गम का बोझ उठाना होगा,

'मेरे अल्फाज़' को अपने डायरी के
पन्नों में महफूज रखा है
अब मरने के बाद अपने साथ ही
इसे दफनाना होगा।
© मेरे अल्फाज़....🦋