...

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तेरे मेरे बीच।।
कहानी जो दास्तां बन चुकी कहीं,
दरमियान न किसी जमाने का शोर है,
एक माहौल की तरह ढल गया हर लम्हा!
तेरी खामियां फिर क्यूं मेरा एक रोग हैं।

कुछ सेहलब बन आती हैं सताने मुझे,
फिर रेत की तरह बिखेर जाति हैं मुझे,
ना होश फिर खुद का ना मेरी हस्ती का!
तेरी एक एक याद कुछ यूं तड़पता छोड़ जाती हैं मुझे।।

ढूंढ लूं किसी समुंदर किनारे ठिकाना कहीं,
फिर न मिले मुझे किसी जमाने का नाम कोई,
भीड़ से जुदा मैं खो जाऊं किसी दरिया पर!
ना मिले कोई ख्वाहिश मुझसे न मिले जमाने का नाम कोई।।

© सुकून