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आज तुम सहसा टकरा गए
#MonsoonPoem
आज तुम सहसा टकरा गए
यादों के उर भवन में
ज्यो कोई बिजली टकराती है
घनघोर, सुने गगन में
फिर से दहक उठी आज
अश्रु की ज्वाला नयन में
विगत कुछ वर्षो की स्मृति
सहसा जल उठी अंतर्मन में
सुने ह्रदय में फिर कोलाहर उठा
ज्यों लघु वर्तिका भड़क गई हो तन-मन में
विगत दिवसो की मधुर सुधी
बड़ा रही है प्यास उमगी नयन में
उस चिर विरह का बढ़ने लगा ताप
ज्यों अमावस की रात्रि हो गई हो इस मन में


© kajal Nayak (kaju)