मेरी बढ़ती खुशी
जवानी में इन झुर्रियों से जितना ज़्यादा घबराती थी मैं,
अब उन झुर्रियों का श्रृंगार मुझे उतना ही अच्छा लगता है।
बेटे का बस्ता तैयार करते करते कब दादी बन गई,
इसका जवाब इन सैकड़ो लकीरों से मिलता है।
खुद घूंघट संभालते हुए कब बहु को समझाने लगी...