ज़िंदगी की भागदौड़
कितनी भागदौड़ की ज़िंदगी ये
सबको पड़ी है अपनी अपनी
किसी को किसी का होश नहीं
सब हैं अपने में रहते मदहोश
मैं भी रहती मस्त मस्त और
बाज़ार की आपधापी और
खींचतान में...
सबको पड़ी है अपनी अपनी
किसी को किसी का होश नहीं
सब हैं अपने में रहते मदहोश
मैं भी रहती मस्त मस्त और
बाज़ार की आपधापी और
खींचतान में...