...

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Ek Soch
एक सोच अक्ल से फिसल गई,
मुझे याद थी के बदल गई,
मेरी सोच थी कि वो ख्वाब था,
मेरी ज़िन्दगी का हिसाब था।
मेरी जुस्तजू के बरस्त थी,
मेरी मुश्किलों का वो अक्श थी,
मुझे याद हो तो वो सोच थी,
जो ना याद हो तो गुमान था,
मुझे बैठे बैठे गुमां हुआ,
गुमां नहीं था खुदा था वो,
मेरी सोच नहीं थी, खुदा था वो,
वो खुदा के जिसने ज़ुबान दी,
मुझे दिल दिया, मुझे जान दी,
वहीं ज़ुबान जिसे ना चला सके,
वहीं दिल जिसे ना लगा सके,
वहीं जान जिसे ना हिला सके,
कभी मिल तो तुझको बताए हम,
तुझे इस कदर से सताए हम,
तेरा इश्क़ तुझसे छीन कर,
तुझे मै बुला कर रुलाए हम,
तुझे दर्द दू , तू ना सह सके,
तू दू ज़ुबान तू ना कह सके,
तुझे दू मकां तू ना रह सके,
तुझे मुश्किलों में घिरा के में ,
कोई ऐसा रस्ता निकाल दूं,
तेरे दर्द कि मै दवा करू,
किसी मर्ज से मै रिहा करू,
तुझे ज़िन्दगी का शऊर दूं,
तुझे हर नजर पर उबूर दूं,
कभी मिल भी जाएंगे ,
गम ना कर, हम गिर भी जाएंगे
गम ना कर,
तेरे एक होने में शक नहीं
मेरी नीयतो को तू साफ कर,
तेरी शान में कोई कमी नहीं,
मेरी इस कलाम को माफ कर।

© A.Nabeel