...

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सच प्यार में डुब जाए मन तो
प्यार का घर है हम तो प्यार से रहते हैं
जब घुमने निकलते हैं सुबहोशाम
कितनों को कहानी किस्सों से हम दिखते हैं

सोचने लगता हूं कुछ इस तरह
ये वाशिंदे क्यों है प्यार के ऐसे दीवाने
वादियों की राहों में सजा फुल भरे वृक्ष
कोमलता से भरी महक बिखराते हैं

गुम हो जाता कहीं उस प्रकृति को छूकर मन
ये प्रेम ही है दिल छोड़ना नहीं चाहता जिसे कभी
वैभव की यह संरचना थिरकाती ऐसी सबको
पशु पक्षी देव दानव मोहित सृष्टि में हर कहीं

इनके कंठों में आ विराजती सरस्वती
आलाप भरते मीठे स्वरों से
बांध लेते उस परमात्मा को
विवश हो वह भी धरती पर आ जाते हैं

ऐसे प्रवाह भरे वातावरण में
मंत्रमुग्ध मन तरन्नुम से भर गाता है
और अनदेखे स्पर्श के अहसासों को समझता
अमर प्रेम उस परम समाधी को पाता है....।




© सुशील पवार