...

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❤️❤️❤️
तेरे रंग में इस कदर रंगी हूं मैं
कि हर रंग तेरे बिना अब बेरंग सा लागे,
तेरे नशे में इस कदर डूबी हूं मैं
कि हर शराब अब तेरे आगे बेशरब सा लागे,
तेरे फितूर में इस कदर चकनाचूर हूं मैं
कि किसी और का ख्याल अब केहर सा लागे,
तेरे उल्फ़त की शिद्दत की मोहताज हूँ मैं
कि तू बस अपना और सब मुझे गैर सा लागे,

तेरे अक्स में खुद की अक्स ढूँढ़ती हूं !
तेरे अफ़्सानों में खुद के अफ़साने बुनती हूं !
तेरे क़ल्ब में खुद की तरन्नुम सुनती हूं !
मेरी ख़ुशी से ज्यादा तेरे तबस्सुम चुनती हूं !
तेरे लहजे में खुद की ज़िक्र हो ऐसी इल्तेजा करती हूं !
तेरे महफिल में मुझे थोड़ी सी पन्हा मिले ऐसी चाहत किया करती हूं!
तेरे खैरियत की दुआ मैं हर मंदिर मज़ीद और मज़ारो में सुनाया करती हूं!
L.L