...

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पहली मोहब्बत
जिन लहरों की आवाज से परेशान हो जाया करती थी,


जिन लहरों की आवाज से परेशान हो जाया करती थी,


आज उन्हीं लहरों की खामोशी समझने लगी हूं,


शायद, शायद, 

कोई है जो मेरी ख़ामोशी समझने लगा है।


जिन तारों से अपनी ख्वाइशें पूरी कराया करती थी,


जिन तारों से अपनी ख्वाइशें पूरी कराया करती थी,


आज उन्हीं टूटते तारों का दर्द समझने लगी हूं ।

शायद कोई है जो मेरी ख्वाहिशें पूरी करने लगा है।


जिन परिंदों को कैद करने के सपने सजाया करती थी,


जिन परिंदों को कैद करने के सपने सजाया करती थी,


आज उन्हीं परिंदों की आज़ादी समझने लगी हूं।


शायद कोई है जो मुझे उड़ने की आज़ादी देने लगा है।


जो देखा ना भाता था,  जो देखा ना भाता था, 


आज वही मुझसे ज्यादा मुझे समझने लगा है,


शायद,  शायद, आज मैने उसमें खुद को पहचाना हैं


शायद, आज मै उससे मोहब्बत करने लगी है।