सिग्नल
मै रोज़ देखता था उसे, सिग्नल पर कुछ न कुछ बेचते हुए।
कभी गुब्बारे, कभी फूल, तो कभी कुछ और
पर कभी भिख मांगते हुए, नहीं देखा,
रोज़ मशक्कत कर रहा था वो, जीने की पुरजोर
मैंने...
कभी गुब्बारे, कभी फूल, तो कभी कुछ और
पर कभी भिख मांगते हुए, नहीं देखा,
रोज़ मशक्कत कर रहा था वो, जीने की पुरजोर
मैंने...