...

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मशरूफ
मशरूफियत के भी
अलग ही अंदाज है
हम भूल जाते है उन्हें भी
जो अकेलेपन में अक्सर साथ निभाते हैं

अगर कहूं कि अच्छा है
मशरूफ रहना भी
तो उनकी बेकदरी होगी
जो खामोशी से बेजारी से बचा जाते है

कुछ चीजे नाचिज नहीं होती है
बेहद जरूरी हो जाती हैं
वक्त के साथ जिन्दगी का
आदतन हिस्सा बन जाती है






© अपेक्षा