...

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तू क्यों सिर जुकाए चलता हे
तू क्यों सिर जुकाए चलता हे,
तू एक रात वाला नायक नहीं,
नाही तू चंद पलों का वक्ता हे,
आसमान विद्रोह पर उतार आया हे
और
गिद्ध भी नोच खाने को मंडरा रहे हे...