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नवरात्रि का आनंद
घट में जलते दीप रूप में,
साथ में होती अम्बा साक्षात,
कहीं गरबे, कहीं धुनुची,
तो कहीं जगराते से सजी रात,
नवरात्रि के आनंद की,
क्या ही करनी बात।
सबके अपने हैं विधि विधान,
सारे देश में भक्ति भाव है एक समान,
शक्ति आराधना के आनंद के आगे,
फीकी जग की सारी बात,
नवरात्रि के आनंद की,
क्या ही करनी बात।
तरह-तरह से भक्त रिझाते अंबे मात,
कहीं रूखी सूखी,
तो कहीं छप्पन भोग का थाल,
व्यंजनों की नहीं,
प्रेम की भूखी है अंबे मात,
प्रेम से खिलाए तो,
हर थाल स्वीकारती अंबे मात,
नवरात्रि के आनंद की,
क्या ही करनी बात।
© kalyani
साथ में होती अम्बा साक्षात,
कहीं गरबे, कहीं धुनुची,
तो कहीं जगराते से सजी रात,
नवरात्रि के आनंद की,
क्या ही करनी बात।
सबके अपने हैं विधि विधान,
सारे देश में भक्ति भाव है एक समान,
शक्ति आराधना के आनंद के आगे,
फीकी जग की सारी बात,
नवरात्रि के आनंद की,
क्या ही करनी बात।
तरह-तरह से भक्त रिझाते अंबे मात,
कहीं रूखी सूखी,
तो कहीं छप्पन भोग का थाल,
व्यंजनों की नहीं,
प्रेम की भूखी है अंबे मात,
प्रेम से खिलाए तो,
हर थाल स्वीकारती अंबे मात,
नवरात्रि के आनंद की,
क्या ही करनी बात।
© kalyani
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