...

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क्या हुआ? अगर वे...
बड़े सलीके से सीखा गए, वक्त को सहना मुझको...
फिकर का जिकर, महज लफ्जों तक बता गए...!!

बना गए मुझको, एक कागज का टुकड़ा वो...
जिंदगी की डायरी में, जो मुझे दफना गए...!!

तलब तक साथ था, जो बदल ही जाना था...
मयकशी का जाम, तनिक मुझ पर भी बरसा गए...!!

हां आए थे जो, लकीर किस्मत की बनकर कभी,
मेरे नाम की हर रेखा, अपने हथेली से मिटा गए...!!

कमबख्त जिंदगी तो है ही, एक अनसुलझी पहेली,
क्या हुआ? गर वे मुझे इस जिंदगी में उलझा गए...!!


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