...

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नारी
हो गई अकेली राहों में,बस गई उलझन की बाहों में
टूटा सब रिश्ता मिथ्या में,अब चुभने लगी हूँ निगाहों में
सच्चाई कहती हूँ मुख से ,समझाये दुनिया इशारों में
कैसे दूँ कठिन परीक्षा मैं,सीता बन अग्नि की राहों में
यह दुनियां झूठा चेहरा है,रावण का न मुझपर पहरा है
लक्ष्मण रेखा को पार किया,वादों से रिश्ता गहरा है
कैसे बतलाऊ जग को मैं,यह लीला खत्म नही होती
बेवश हो कर सब सहती हूँ ,सच्चाई भस्म नही होती
ताने सुनकर के ज़माने के,बेवस होकर मैं मर जाऊं
कर दूं संघार पापियों का,क्या लक्ष्मीबाई बन जाऊं
बेवस कर मुझे न ठुकराओ,ऐ नर ईमान जगा लो अब
"चन्डी'का रूप ले लिया अगर,दुनियां में तमाशा बनेंगे सब
सुन पाखण्डी गर इस जग में,मानव की नीयत मैली है
अपनी...