...

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नारी
हो गई अकेली राहों में,बस गई उलझन की बाहों में
टूटा सब रिश्ता मिथ्या में,अब चुभने लगी हूँ निगाहों में
सच्चाई कहती हूँ मुख से ,समझाये दुनिया इशारों में
कैसे दूँ कठिन परीक्षा मैं,सीता बन अग्नि की राहों में
यह दुनियां झूठा चेहरा है,रावण का न मुझपर पहरा है
लक्ष्मण रेखा को पार किया,वादों से रिश्ता गहरा है
कैसे बतलाऊ जग को मैं,यह लीला खत्म नही होती
बेवश हो कर सब सहती हूँ ,सच्चाई भस्म नही होती
ताने सुनकर के ज़माने के,बेवस होकर मैं मर जाऊं
कर दूं संघार पापियों का,क्या लक्ष्मीबाई बन जाऊं
बेवस कर मुझे न ठुकराओ,ऐ नर ईमान जगा लो अब
"चन्डी'का रूप ले लिया अगर,दुनियां में तमाशा बनेंगे सब
सुन पाखण्डी गर इस जग में,मानव की नीयत मैली है
अपनी आबरू दिखाओ तुम,इनकी भी पवित्रता मैली है
रूक जाए कदम गर तेरे तो,बेवस उनको भी बना देना
मर्दिनी का रूप रचेंगी वो,ज्वाला से खुद को बचा लेना
स्त्री की आबरू क्या होती,एक सांस है जिस्म पनाहों में
कितनी कठिनाई सहती है,दुनियादारी की राहों में
हो गई अकेली राहों में काटों सी चुभी निगाहों में
बेवश हूँ पर मजबूर नही,मंज़िल मेरी है कहीं न कहीं
ठुकरायेगा तू क्या मुझको,मैं चरण की तेरे धूल नही
सब ने लूटा ईमान यहां,बाज़ारू है इंसान यहां
इज़्ज़त पर पर्दा करते है,इज्ज़त से बसे बेईमान यहां
लिखता हूँ कलम की विवशता पर,बेवस नारी के पुकारो को
ना तड़प ह्रदय की रोक सकूँ, क्या समझूँ इज्ज़तदारो को
चीत्कार सुनाई नही देती,नारी का तन व्यापार बना
नारी की आबरू सच्ची है,नारी से ही संसार बना
ऐ पुरुष सुधारो अब खुद को,जिससे नारी की लाज बचे
यह माया रूपी चण्डिका है,त्रिदेव हैं इनकी काया रचे
मजबूर न करना नारी को नौरूप से है सृंगार बने
आवेश में यह ना भूलो तुम,इनसे जग में इंसान बने
सामना हुआ गर चन्डी से,जन का सम्मान ही जायेगा
सर कटेंगे ना गिन पाओगे,श्मशान जहाँ बन जायेगा

© Roshanmishra_Official