...

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मैं
एक टूटा सा तारा बन गई हूं मैं
ख्वाहिशों से परे एक सूखा सा
पत्ता बन गई हूं मैं......

हर रोज आंसू झलक जाते हैं
मेरी इन आंखों से
पुराने दर्द के साथ साथ
नए दर्द को भी आमंत्रित
कर रही हूं मैं......

खत्म ना हों तन्हाई की रातें कभी
क्योंकि इन्हीं में अब अपना
बसेरा कर रही हूं मैं.....

कई ख्वाब हैं जो टूट चुके हैं
कुछ और ख्वाबों के टूटने की
प्रतिक्षा कर रही हूं मैं.....

होश खो बैठी हूं अपने मैं
शायद इसलिए खुद को
तकलीफ दे रही हूं मैं.....

ए खुदा सिर्फ कांटे ही बिछाना
मेरी राहों पर क्योंकि अब
फूलों से डर रही हूं मैं..!!!!