गज़ल- कैसी ये तब्दीली हो गई।
जो सुर्ख रंगत थी, अब वो पीली हो गई।
मुझको देखते ही, कैसी ये तब्दीली हो गई।
कौन कहता है खिलते नहीं फूल, बंजर ज़मीनों पे
उसको देखते ही दिल की मिट्टी, गीली हो गई।
दिन में बस एक मुलाक़ात, क्या हुई उनसे
मेरी चांदनी रातें और भी, चमकीली हो गई।
कैसा होता है दोस्तों, संगत का असर देखो
दुश्मन से मिला तो, जबां ही जहरीली हो गई।
इश्क़ किया मैंने, तब जाके ये मालूम हुआ
मखमली राहें, किस तरह पथरीली हो गई।
© वरदान
मुझको देखते ही, कैसी ये तब्दीली हो गई।
कौन कहता है खिलते नहीं फूल, बंजर ज़मीनों पे
उसको देखते ही दिल की मिट्टी, गीली हो गई।
दिन में बस एक मुलाक़ात, क्या हुई उनसे
मेरी चांदनी रातें और भी, चमकीली हो गई।
कैसा होता है दोस्तों, संगत का असर देखो
दुश्मन से मिला तो, जबां ही जहरीली हो गई।
इश्क़ किया मैंने, तब जाके ये मालूम हुआ
मखमली राहें, किस तरह पथरीली हो गई।
© वरदान