एक मासूम
एक मासूम फिर फस गया
जालसाजों के घेरे में
ना जाने उसने क्या देखा
उस जिस्म के लुटेरे में
सादगी हया भी तो
दिखती नही उस चहरे में
फिर कैसे जा गिरा वो
दलदल इस गहरे में
क्या सोचकर पत्थर मारा
दरिया इस ठहरे में
फर्क करना आता नही क्या
अंधे में और बहरे में
अपना अतीत ढूंढता है
अब दिन के अंधेरे में
गुजरी बाते याद करता है
रातों के सवेरे में
आग लगा कर बैठा है वो
यादों के बसेरे में
एक नही कई लाख कमी
रह गई है " दीप " तेरे में
एक मासूम फिर फस गया
जालसाजों के घेरे में
© दीप
जालसाजों के घेरे में
ना जाने उसने क्या देखा
उस जिस्म के लुटेरे में
सादगी हया भी तो
दिखती नही उस चहरे में
फिर कैसे जा गिरा वो
दलदल इस गहरे में
क्या सोचकर पत्थर मारा
दरिया इस ठहरे में
फर्क करना आता नही क्या
अंधे में और बहरे में
अपना अतीत ढूंढता है
अब दिन के अंधेरे में
गुजरी बाते याद करता है
रातों के सवेरे में
आग लगा कर बैठा है वो
यादों के बसेरे में
एक नही कई लाख कमी
रह गई है " दीप " तेरे में
एक मासूम फिर फस गया
जालसाजों के घेरे में
© दीप