...

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तुम्हारी वो बेवक्त की हंसी ....
मुझे याद है,
तुम्हारी वो बेवजह की हंसी
एक दिन मैंने पूछ लिया था तुमसे
क्यों हंसती हो इतना?
तब
तुमने कहा था
जब उग आते हैं
बेवजह मन के बंजर मे
कुछ बेहद जहरीले कैक्टस
और छाले पड़ जाते हैं समय असमय
तब
ये हंसी समुद्र सा
बहा ले जाती है
और जहर का ताप सोख
मन के छालों को थोड़ी ठंडक सी मिल जाती है
तुम्हारी उस बेवक्त की हंसी को तब
संभाल कर रख दिए थे मैने
किसी कोटर मे ..
आज वर्षो बाद सहला कर निकाला है उसे

-Aparna