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जनहित की जड़ की बात - 19 (2)
जनहित की जड़ की बात - 19 (2)
( महामारी परिदृश्यों को परिलक्षित करती हुई)

गोलों में खड़े रहे हम, गोले बना बना बनायके !
पैदल भिजा रहे थे हम, कोसों चला चलायके !!

अन्नजल दवा बिन जन का पेट जल रहा था !
सर उठा जीने वालों को, झुकना ही पड़ रहा था !!

दान मिले, तो ले के खा ले, तभी मिलेंगे चंद निवाले !
बीच बीच में बात बात पे, ड़ण्डों का परसाद भी पाले !!

इन हालातों से तंग आके, सारी बची रकम लगाके !
साधन जो भी मिला जुटाके, चैन मिलेगा घर ही जाके !!

बीच रास्ते पुलिस भेजके, पड़वाये ड़न्डे खेंच खेंच के !
नेता चैन से जी रहे थे, जैसे सो रहे घोड़े बेच के !!

एक दिन भी दिया नहीं, घंटों में बंद किया सभी !
चंद केस ही देश में थे, कुछ दिन तो दे देते तभी !!

जानें कई बच सकती थी, क्यूं इतनी भी समझ न थी !
सावधानी की गर बात थी, तख्त पलट की क्या बात थी ?

जहाजों में आने वालों को, गर अलग रख लिया होता !
महामारी का फैलाव हरगिज़, इस कदर न हुआ होता !!

कोई उल्लू नहीं यहां ये, इलू इलू वालों सुन लो !
दिन बचे हैं चंद ही, चाहो जैसे भी तुम गिन लो !!

मशीनमन का जिस दिन, मंत्र उजागर हो जायेगा !
या भगत या सुभाष जैसा, जनहित में आगे आयेगा !!

जज जजमानी छोड़ देंगे, न्यायतंत्र तब होगा निडर !
अपराधी में जिस दिन होगा, कानूनी धाराओं का ड़र !!

एक मिनट के मौन का, मान भी सीखा नहीं !
नोटबंदी शहीदों हेतु, मौन भी रक्खा नहीं !!

इस सत्यबयानी में कलम भी, अब सहमी-सहमी है।
कुछ ही मालिक हैं सभी के, ये गलत फहमी ही है ।।

चांडाल चौकडी के जरिये, ड़ाके जनहित पे डाल रहे !
सरस्वती के पुत्रों में अब से, सच का ही उबाल रहे !!

आइना जिस दिन तुमरे, सामने आ जायेगा !
वीभत्स तुम्हारा तुम्हें दिखा, सारा चैन मिटायेगा !!

माफी मांगन का इकलौता, पर्याय बचा है सबके पास !
बलिदानियों ने भूल की, हरगिज न हो उन्हें अहसास !!

जान लगाकर जनहित की, ज्योत जला गये थे वो !
उन अनमोल शहादतों को, याद भी कर लिया करो !!

ड़र को दूर भगाओ सब, एकजुट हो जाओ सब !
जनहित ज्योत जलती रहे, ये अहसास जगाओ अब !!

-आवेश हिन्दुस्तानी 24.10.2020