शीर्षक - छोड़ रहा।
शीर्षक - छोड़ रहा।
चेहरा अपना रंगत छोड़ रहा।
क़ल्ब ज़िस्म का संगत छोड़ रहा।
ग़ाफ़िल बन चुका ज़हन अब,
साथ धीरे-धीरे अनवरत छोड़ रहा।
मुर्दनी की बन रही लकीरें,
बदन अपनी हरक़त छोड़ रहा।
बख़्तर टूट चुका ज़िंदगी का,
ज़ीस्त जीने की...
चेहरा अपना रंगत छोड़ रहा।
क़ल्ब ज़िस्म का संगत छोड़ रहा।
ग़ाफ़िल बन चुका ज़हन अब,
साथ धीरे-धीरे अनवरत छोड़ रहा।
मुर्दनी की बन रही लकीरें,
बदन अपनी हरक़त छोड़ रहा।
बख़्तर टूट चुका ज़िंदगी का,
ज़ीस्त जीने की...