गुमशदा
दस्तूर - ए - वफ़ा ज़माने में निभाता है कोई?
क्यों है ख़ुद से खफा तुझको कहां मनाता है कोई?
गर्द फैली है कमरें में तेरी जब से उम्मीद से बैर।
पन्नों के सिवा तेरे कमरों में क्या ढूंढ पाता है कोई?
एक हुस्न एक इश्क़ और एक अधूरी सी मोहब्बत।
ज़िंदादिल तेरे कैफियत से कहां दिल...
क्यों है ख़ुद से खफा तुझको कहां मनाता है कोई?
गर्द फैली है कमरें में तेरी जब से उम्मीद से बैर।
पन्नों के सिवा तेरे कमरों में क्या ढूंढ पाता है कोई?
एक हुस्न एक इश्क़ और एक अधूरी सी मोहब्बत।
ज़िंदादिल तेरे कैफियत से कहां दिल...