गुझिया प्रेम
जेठ मास में भक्तों से घिरे गजानन,
आम का ले रहे थे रसास्वादन।
कोई हाथ जोड़े नमन करता चरण,
तो कोई करता भक्तों में मिश्री का वितरण।
कोई कर रहा चंदन का लेपन,
कोई फूलों की हार से करता वंदन।
बोले चंदू मुकीम से संत गजानन,
नही खाना आम गुझिया खाने का है मन।
तेरे घर के मटके की दो गुझिया खाने का है मन,
आदर से चंदू ने किया संत से निवेदन।
प्रभु इस समय गुझिया न हो घर पर,
वह तो बनी थी अक्षय तृतीया पर।
मैं ताजे लता हूँ साहित्य है घर पर,
कहा गजानन ने वही लाओ रखी मटके में ऊपर।
ताज़ी नही बसी गुझिया खाने का है मन,
जाओ तुरंत घर मत करो यहाँ मिथ्या वचन।
पत्नि से कहा संत का गुजिया खाने का है मन,
पर ताज़ी नही बासी खाने का उनका मन।
कहा उन्होंने मटके में दो गुजिया रखी है ऊपर,
पत्नि को आया स्मरण रखी थी मटके में ऊपर।
हर्षित हुए दोनो गुजिया पाकर,
कुछ सिकुड़ी थी पर अखण्ड था आकार।
गजानन को किया गुजिया अर्पण,
गजानन ने लिया स्वाद का आनंद।
देखा सबने संत का चमत्कार,चंदू का आनंद,
व्यर्थ न हो कुछ भी यही संत का प्रवचन।
संजीव बल्लाल १०/३०२०२४© BALLAL S
आम का ले रहे थे रसास्वादन।
कोई हाथ जोड़े नमन करता चरण,
तो कोई करता भक्तों में मिश्री का वितरण।
कोई कर रहा चंदन का लेपन,
कोई फूलों की हार से करता वंदन।
बोले चंदू मुकीम से संत गजानन,
नही खाना आम गुझिया खाने का है मन।
तेरे घर के मटके की दो गुझिया खाने का है मन,
आदर से चंदू ने किया संत से निवेदन।
प्रभु इस समय गुझिया न हो घर पर,
वह तो बनी थी अक्षय तृतीया पर।
मैं ताजे लता हूँ साहित्य है घर पर,
कहा गजानन ने वही लाओ रखी मटके में ऊपर।
ताज़ी नही बसी गुझिया खाने का है मन,
जाओ तुरंत घर मत करो यहाँ मिथ्या वचन।
पत्नि से कहा संत का गुजिया खाने का है मन,
पर ताज़ी नही बासी खाने का उनका मन।
कहा उन्होंने मटके में दो गुजिया रखी है ऊपर,
पत्नि को आया स्मरण रखी थी मटके में ऊपर।
हर्षित हुए दोनो गुजिया पाकर,
कुछ सिकुड़ी थी पर अखण्ड था आकार।
गजानन को किया गुजिया अर्पण,
गजानन ने लिया स्वाद का आनंद।
देखा सबने संत का चमत्कार,चंदू का आनंद,
व्यर्थ न हो कुछ भी यही संत का प्रवचन।
संजीव बल्लाल १०/३०२०२४© BALLAL S
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